जयनंदन स्मृति वन में पर्यावरण सुरक्षा के साथ अब लगाए गये कई आयुर्वेदिक दिव्य औषधीय पौधे

-विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष-परम्परागत जड़ी-बूटी के उपचार को पुन: स्थापित करने का प्रयास

-पिता के प्रति श्रद्धा, पर्यावरण के प्रति प्रेम व स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का सन्देश

पेटरवार : पंकज – पेटरवार एक पर्यावरण प्रेमी ने एक ओर अपने पिता की याद में स्मृति वन एवं जन्मदिन पर आम बागवानी लगा कर पर्यावरण सुरक्षा का एक आदर्श पाठ प्रस्तुत किया है। वहीं पर दूसरी ओर गिलोय, कालमेघया चिरायता, अलोबीरा, वन जीरा, अपामार्ग, पत्थर चट्टा, धथुरा, सहित अन्य कई दिव्य औषधीय पौधे व औषधीय पेड़ लगा कर रोगियों के उपचार का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

अपने पूर्वजों एवं महान व्यक्तियों की स्मृति में शिक्षण संस्थान, मंदिर, अस्पताल, व्यवसायिक प्रतिष्ठान, मेला, गेट, भवन, पथ या स्मारक बना कर याद करने की परम्परा चली आ रही है जो सदियों पुरानी हो गई है। पर, पर्यावरण प्रेमी नागेश्वर महतो ने कहा कि कुछ अलग करने का विचार मन में ठाना और अपने पिता की स्मृति में निजी स्तर पर दो दशक के लगातार अपने श्रम से जयनन्दन स्मृति वन विकसित कर दिखाया। जिसमें आज सैकडों फलदार व इमारती पेड -पौधे लह लहा रहे हैं और शुद्ध हवा, शीतल छाया, फल व औषधीय सामग्रियां दे रहे हैं। जो आज के कृत्रिम परिवेश में  पर्यावरण सुरक्षा का आदर्श पाठ व जड़ी-बूटी से उपचार व इम्युनिटी बुस्ट करने के परम्परा को पुन: स्थापित कर रहे हैं।स्मृति वन का शुरुआत :-  पर्यावरण प्रेमी श्री महतो ने अपने पिता की याद को कई  पीढ़ियों तक बरकरार रखने के लिये एवं पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक नया तरकीब अपनाया और पैतृक गांव कसमार प्रखंड अंतर्गत बरईकलां पंचायत के तेतरटांड टोला में 2007 से वन लगाना आरम्भ किया। प्रत्येक स्मृति दिवस व राष्ट्रीय त्यौहार व पर्व के अवसर पर पौध -रोपण किया जाता रहा। वन की सुरक्षा व मूर्त रूप देने में इस परिवार के सभी सदस्यों ने गहरी अभिरुचि दिखा कर अहम योगदान दिया है।वन विकसित करने में सरलता :- वन के लिए विशेष खर्च, योजना और तकनिक की आवश्यकता नहीं पड़ी. जानवरों से बचाने के लिए सिंदवार व पुटुस किनारे -किनारे लगा कर वन को सुरक्षा प्रदान किया गया।सिर्फ मन में ठान लिया और लगातार वन संवर्धन के लिये प्रयासरत रहा। जिससे देखते ही देखते  वन विकसित हो गया। अब वन का सुनहरा दृश्य लोगों को अपनी ओर लुभाने लगा है। और लोग देखने, घूमने व जानने के लिए अक्सर पहुंचा करते हैं। अब योगाभ्यास, कसरत, मॉर्निंग वाक, किसान प्रशिक्षण व अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।  लहलहा रहे हैं ये पेड :- वन में आम, जामुन, कटहल, महुआ, काजू, शरीफा, महोगनी, सागवान, शीशम, अकासिया, नीम, गढ़नीम आदि पेड लगे हैं जिसमें सभी लोगों को शीतल छाया मिलता है और अब फल देना भी आरम्भ हो गया है। कई औषधीय जड़ी-बूटियां भी विकसित हो रही हैं। जन्मदिन पर लगाया आम बागवानी :- वर्तमान समय में जन्मदिन मनाने के लिये अत्याधुनिक महंगे तरीकों व गति विधियों का जोरों से नकल करने की परिपाटी चली है। पर  पर्यावरण की यथार्तता के लिए एवं संस्कार, सभ्यता व समृद्धि के लिए श्री महतो ने अपने जन्मदिन पर 2017 में  स्मृति वन के निकट एक अलग प्लॉट पर आम बागवानी अपने निजी स्तर पर लगाया है। जिसमें आम के कई उत्तम प्रजातियां, अमरुद, बेल, लीची, संतरा, सेव, शरीफा, शहतूत, आँवला, चीकू, सहजन, उत्तम प्रजाति के नारियल के पौधों को जहर मुक्त प्राकृतिक खाद के सहयोग से विकसित किया है। बीच-बीच में पपीता, ओल, नेपियर घास,  आदि की खेती किया जाता है।धार्मिक महत्त्व :- एक पेड लगाने का बडा पुण्य होता है। पेड-पौधे मानव जीवन के प्रत्येक संस्कार, दैनिक गति विधि, फल, स्वास्थ्य सुरक्षा, शुद्घ हवा के लिए प्रयुक्त होते रहे हैं। मृत्यु पर्यन्त पेड -पौधों का प्रयोग होता है. पथ्वी हमारी माता है और पेड-पौधे उसका परिधान है। एक पेड लगाते हैं तो पृथ्वी माता को एक परिधान समर्पित करते हैं।

 हर अच्छा भावना का अच्छा काम दिखना स्वभाविक है। मंदिर, मस्जिद, गिरजा घर व गुरुद्वारा निर्माण- सामग्रियों से बना कर  आस्था व विश्वास तो जताना सादियों पुरानी है। पर इस पर्यावरण प्रेमी ने पेड पौधे लगा कर प्रकृति या कृषि धाम का निर्माण किया है। जिसमें प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, पारम्परिक, श्रद्धा, धार्मिक व आस्था का केंद्र है। जिसकी सेवा करने पर साक्षात फल की प्राप्ति हो रही है। अब तक दर्जनों  साथियों को उत्प्रेरित कर उनके जमीन पर पौधा लगवाया है।

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