राजमहल कोल परियोजना में ड्रेस कोड लागू, 2.59 करोड़ रुपये आवंटित

रैयतों की समस्याओं को लेकर उठी आवाज, मूलभूत सुविधाओं की मांग तेज। शंकर सुमन गोड्डा जिला के ललमटिया अंतर्गत ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) की राजमहल कोल परियोजना में कार्यरत 1950 कर्मियों और 125 पदाधिकारियों के लिए ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है। इस पहल के तहत सभी कर्मचारियों को तीन स्टैंडर्ड कंपनी की यूनिफॉर्म खरीदना अनिवार्य किया गया है। ड्रेस खरीद के लिए ईसीएल ने प्रत्येक के बैंक खाते में ₹12,500 की राशि ट्रांसफर की है। कुल 2075 कर्मियों के लिए कंपनी ने ₹2.59 करोड़ (₹2,59,37,500) की राशि खर्च की है।इसके अतिरिक्त, परियोजना में कार्यरत 125 पदाधिकारियों को ग्रेड के अनुसार ₹30,000 से ₹60,000 तक मूल्य के मोबाइल फोन प्रदान किए जाने के निर्देश भी जारी किए गए हैं।परियोजना क्षेत्र की प्रमुख जशीनता हेंब्रम ने ड्रेस कोड की पहल को सराहनीय बताते हुए कहा कि इससे कार्यस्थल पर एकरूपता और अनुशासन की भावना बढ़ेगी। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि परियोजना से प्रभावित ग्रामीण अब भी मूलभूत सुविधाओं — जैसे स्वास्थ्य सेवाएं और स्वच्छ पेयजल — से वंचित हैं। उन्होंने प्रबंधन से मांग की कि इन बुनियादी आवश्यकताओं को तत्काल प्राथमिकता दी जाए। वहीं, एटक यूनियन के सचिव राम जी साह ने प्रबंधन पर रैयतों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास जैसी मांगों को लेकर ग्रामीण वर्षों से कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इन समस्याओं का शीघ्र समाधान नहीं हुआ तो परियोजना विस्तार में बाधाएं आ सकती हैं। ड्रेस कोड और मोबाइल वितरण पर उठ रहे सवाल: जहाँ एक ओर करोड़ों रुपये खर्च कर कर्मचारियों को ड्रेस और मोबाइल दिए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय ग्रामीण स्वास्थ्य, पानी और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस असंतुलन को लेकर परियोजना क्षेत्र में बहस तेज हो गई है।

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मधुश्रावणी व्रत आज से प्रारंभ, नवविवाहिताओं ने की शिव-पार्वती की पूजा

महागामा सहित मिथिलांचल में धार्मिक आस्था का उत्सव शुरू। शंकर सुमन गोड्डा में मिथिलांचल की पारंपरिक संस्कृति को जीवंत रखते हुए मंगलवार से मधुश्रावणी व्रत की शुरुआत हुई। यह व्रत नवविवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की मंगलकामना के लिए करती हैं। महागामा प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में इस व्रत की शुरुआत श्रद्धा और उत्साह के साथ हुई।मान्यता है कि सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु यह व्रत किया था। उसी परंपरा को निभाते हुए नवविवाहिताएं बड़े ही नियम-धर्म और फलाहार के साथ प्रतिदिन पूजा करती हैं।व्रत का आयोजन लगातार 14 दिनों तक चलता है, जिसमें प्रतिदिन विभिन्न कथाएँ, विशेषकर नाग-नागिन और सप्तऋषियों की कथाएँ, सुनी जाती हैं। पूजा में मधु (शहद) अर्पित किया जाता है, जिससे इस व्रत का नाम “मधुश्रावणी” पड़ा है।स्थानीय मंदिरों और घरों में भक्ति-भाव के साथ शिव-पार्वती की पूजा, व्रत कथाएँ और पारंपरिक गीतों के माध्यम से माहौल भक्तिमय हो उठा है।

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